आज हर व्यक्तित्व लगता थका हारा है
और हर चेहरा की जैसे सर्वहारा है
कौन ज़िम्मेदार है उनकी तबाही का
उनकी किश्ती को भँवर में किसने उतारा है
तोड़ कर पतवार उसकी फेंक दी किसने
कर दिया किसने उसे यों बेसहारा है
मुठ्ठियों में जो वक़्त को कैद करता था
मान ले कि वक़्त ने उसको मारा है
बंद करके कान, चेहरे पर लिए मुस्कान
आप कहते हैं, कहाँ किसने पुकारा है
बंद कर के आँख तुम भी मत कहो 'नसीर'
बहुत दिलकश बहुत अच्छा नज़ारा है
और हर चेहरा की जैसे सर्वहारा है
कौन ज़िम्मेदार है उनकी तबाही का
उनकी किश्ती को भँवर में किसने उतारा है
तोड़ कर पतवार उसकी फेंक दी किसने
कर दिया किसने उसे यों बेसहारा है
मुठ्ठियों में जो वक़्त को कैद करता था
मान ले कि वक़्त ने उसको मारा है
बंद करके कान, चेहरे पर लिए मुस्कान
आप कहते हैं, कहाँ किसने पुकारा है
बंद कर के आँख तुम भी मत कहो 'नसीर'
बहुत दिलकश बहुत अच्छा नज़ारा है
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